Thursday, April 14, 2011

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी शर्त थी
लेकिन कि ये बुनियाद भी हिलनी चाहिए ...

हर सड़क पर, हर गली में,
हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग,
लेकिन आग जलनी चाहिए


Monday, February 21, 2011

कौन बनेगा करोडपति

कौन बनेगा करोडपति

का
अगला सवाल है

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... और ये सवाल है ............. आपके लिए ................

350 लाख करोड़ का

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350 लाख करोड़ का सवाल है ...

"भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा"
ये कहना है स्विस बैंक के डाइरेक्टर का. स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग 350 लाख करोड़ रुपये (350 ,00 ,000 ,000 ,000) उनके स्विस बैंक में जमा है.

ये रकम इतनी है कि भारत का आने वाले 30 सालों का बजट बिना टैक्स के बनाया जा सकता है. या यूँ कहें कि 60 करोड़ रोजगार के अवसर दिए जा सकते है. या यूँ भी कह सकते है कि भारत के किसी भी गाँव से दिल्ली तक 4 लेन रोड बनाया जा सकता है. ऐसा भी कह सकते है कि 500 से ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण किये जा सकते है. ये रकम इतनी ज्यादा है कि अगर हर भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए जाये तो 60 साल तक ख़त्म ना हो. या यु कहे कि हर भारतीय परिवार को करीब 10 किलो सोना हम दे सकते है | या फिर हिन्दुस्तान के 6 लाख 38 हजार 365 गांवों में सड़क बनाई जाये तो प्रत्येक गाँव में करीब 10 मिली मीटर मोती सोने कि परत बिछा सकते है |

यानी भारत को किसी वर्ल्ड बैंक से लोन लेने कि कोई जरुरत नहीं है. जरा सोचिये ... हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और नोकरशाहों ने कैसे देश को लूटा है और ये लूट का सिलसिला अभी तक 2011 तक जारी है. इस सिलसिले को अब रोकना बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है. अंग्रेजो ने हमारे भारत पर करीब 200 सालो तक राज करके करीब 1 लाख करोड़ रुपये लूटा. मगर आजादी के केवल 64 सालों में हमारे भ्रस्टाचार ने 350 लाख करोड़ लूटा है. एक तरफ 200 साल में 1 लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64 सालों में 350 लाख करोड़ है. यानि हर साल लगभग 4.37 लाख करोड़, या हर महीने करीब 36 हजार करोड़ भारतीय मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट लोगों द्वारा जमा करवाई गई है.

भारत को किसी वर्ल्ड बैंक के लोन की कोई दरकार नहीं है. सोचो की कितना पैसा हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और उच्च अधिकारीयों ने ब्लाक करके रखा हुआ है.

हमे भ्रस्ट राजनेताओं और भ्रष्ट अधिकारीयों के खिलाफ जाने का पूर्ण अधिकार है. हाल ही में हुवे घोटालों का आप सभी को पता ही है - CWG घोटाला, २ जी स्पेक्ट्रुम घोटाला , आदर्श होउसिंग घोटाला ... और ना जाने कौन कौन से घोटाले अभी उजागर होने वाले है ........

आप लोग जोक्स फॉरवर्ड करते ही हो. इसे भी इतना फॉरवर्ड करो की पूरा भारत इसे पढ़े ... और एक आन्दोलन बन जाये ...

प्रति मिनट 3 करोड 42 लाख रुपये की लूट हो रही है भारत में .....

01- इलाज के नाम पर पूरे देश में प्रति वर्ष लगभग 10 लाख करोड़ रुपये की लूटी हो रही है। अनावश्यक दवा, अनावश्यक परीक्षण पर गैर जरुरी आँपरेशन का रोज खतरनाक खेल, रहा है।
02
- शराब, तम्बाकू, गुटखा, अफीम व चर्स आदि नशीले सेवन से देश के प्रति वर्ष लगभग 10 लाख करोड़ रुपया बर्बाद हो रहे है।

03 - विदेशी कम्पनियों द्वारा साबुन, शैम्पू, टूथपैस्ट, क्रीम, पाउडर, आचार, चटनी, चिप्स, कोकाकोला व पेप्सी आदि गैरजरुरी अनुपयोगी व स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वस्तुएं बैचकर भारत से प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख करोड़ रुपये की लूटी हो रही है।

देश का धन विदेशी लोगों के हाथों में जाने से देश आर्थिक दृष्टि से कमजोर हो रहा है।

04 - यूरिया, डी,ए,पी व अन्य हानिकारक खाद व जहरीले कीटनाशकों से एक ओर जहाँ धरती माता की कोख (खेत) व इंसान का पेट विषैला हो रहा है

05 - गो व पशुधन आधारित कृषि व्यवस्था न होने से प्रतिवर्ष लाखों गायों व अन्य पशुधन का बर्बरता के साथ कत्लखानों में वध हो रहा है। प्रतिवर्ष इन जहरीली खाद व कीटनाशकों से देश के लगभग 5 लाख करोड़ रुपये नष्ट हो रहा है।

06 - लगभग 258 लाख करोड रूपया इब नेताओ ने विदेशों में जमा कार रखा है अभी भी यह लूट का सिलसिला रुका नहीं है। प्रतिवर्ष 1,6 ट्रिलियन डाँलर अभी भी देश की सीमाओं से बाहर काला धन जमा होता है। अर्थात प्रतिवर्ष अभी भी लगभग 72 लाख करोड रुपये दुनिया के बेईमान लोग अपने-अपने देशों से लूटकर दूसरे देशों में जमा करते है।

07 - इस धनराशि को यदि महीने व दिनों में विभाजित करें तो प्रतिमाह 1 लाख 50 हजार करोड, प्रतिदिन 4931,5 करोड, प्रतिघंटा 206 करोड एवं प्रति मिनट 3 करोड 42 लाख रुपये की लूट हो रही है।


08 - नक्सलवाद, माओवाद, आंतकवाद, गरीबी व बेरोजगारी आदि समस्त ज्वलंत सम्स्याओं व चुनौतियों का मूल कारण भ्रष्टाचार, काला धन एवं पक्षपात की गलत नीतियाँ एवं व्यवस्थाएं भी है व बेरोजगारी आदि समस्त ज्वलंत समस्याओं व चुनौतियों का मूल कारण भ्रष्टाचार, काला धन एवं पक्षपात की गलत नीतियाँ एवं व्यवस्थाएं भी है।


09 - जहाँ एक ओर देश के लोग ईमानदारी से मेहनत करके देश के विकास में लगे है और प्रति वर्ष 50 से 60 लाख करोड की जी,डी,पी, देकर देश को ताकतवर बना रहे है वहीं दूसरी और हमारी घटिया सोच, गलत नीतियों व भ्रष्टाचार पर अंकुश न होने से देश का लगभग 50 लाख करोड रुपये प्रतिवर्ष बेरहमी व बेदर्दी से लूटा जा रहा है व देश का विनाश हो रहा है और हमारे अपने घर के 5 लाख रुपये लूटने, नष्ट या बर्बाद होने पर हमे कितता कष्ट होता है।


10 - हम 120 करोड भारतीयों के होते देश का प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख करोड रुपये लुटता रहता है और हम मौन होकर यह सब देख रहे इससे बडी शर्म, अपमान या बेबसी की बात और क्या हो सकती है।


11 - इस लूट के लिए जिम्मेदार कौन? समाज के ताकतवर बडे लोग, चाहे वह बडे डाक्टर्स, हाँस्पिटल्स हो, या फिर बडे व्यापारी, बडे अधिकारी, पर सबसे ज्यादा जिम्मेदार है बडे नेता जिनके हाथों में इस देश की सर्वोच्च सत्ता व शक्ति है। भ्रष्टाचार के लिए तो वे 100 फीसदी सीधे जिम्मेदार ही साथ ही दुसरी लूट में भी उनकी भागीदारी है। चाहे बडे हाँस्पिटल्स हो, दवा निर्माता कम्पनियाँ, हो या फिर शराब तम्बाकू या अन्य नशा बनाने वाली कम्पनियाँ हों अथवा विदेशी कम्पनियां जिनके साथ कुछ रसूखदार ताकतवर नेताओं की पार्टनरशिप होती और कई बार तो वे सीधे तौर पर खुद ही मालिक होते हैं।

लूट का समाधान !

(1) नित्य नियमानुसार योगाभ्यास करें, रोगी होने से बचें तथा रोगी योग करके निरोगी बनें। योगाभ्यास, नियमित व संयमित जीवन व आयुर्वेद की आयु व स्वास्थ्य वर्धक जडी-बूटियों का प्रयोग करें। (2) नशामुक्त जीवन जीने का संकल्प लें। योगाभ्यास से रोग मुक्ति के साथ स्वत: नशामुक्ति भी मिलती है। नशे से तन, धन, मन, आत्मा व धर्म की हानि के बारे में खुद समझे औरों को समझाएं। (3) 100 प्रतिशत स्वदेशी को अपनाने का व्रत या संकल्प लें। शून्य तकनीकों से नही विदेशी वस्तुएं खासतौर पर साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट, क्रीम, पाउडर, ब्रेड, बिस्कुट, चिप्स, कोकाकोला व पेप्सी आदि का प्रयोग कभी न करें। गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्यवर्धक सस्ते व स्वदेशी उत्पादों की उपलब्धता प्रत्येक प्रान्त व जिला स्तर पर करवाने तथा रोग, नशा व बेरोजगारी मुक्त, पूर्ण स्वस्थ, संस्कारवान व समृद्घ गांवों के निर्माण हेतु 600 जिलों में पतंजलि ग्रामोंद्योग योजना शीघ्र ही प्रारम्भ कर रहे हैं। (4) विष मुक्त अन्न (आँर्गेनिक फूड) खाएं व गो-दूध व गोघृत आदि के सेवन को प्रोत्साहन दें। जब उपभोक्ता के रुप में हम आँर्गेनिक बाजार तैयार करेंगें तो किसान भी धीरे-धीरे विष मुक्त कृषि की नीति को अवश्य अपनायेंगें। (5) भ्रष्टाचार का पूरी ताकत से विरोध करें। न रिश्वत लें और न दें। भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के लिए भारत स्वाभिमान के सदस्य, कार्यकर्ता व शिक्षक बनकर भारत स्वाभिमान की नीतियों का प्रचार करें।

मौत का व्यापार .................... एलोपेथी .............

हमारे भारत में एक मंत्रालय हुवा करता है जो परिवार कल्याण एवं स्वास्थ्य मंत्रालय कहलाता है| हमारी भारत सरकार प्रति वर्ष करीब 23700 करोड़ रुपये लोगों के स्वस्थ्य पर खर्च करती है | फिर भी हमारे देश में ये बीमारियाँ बढ़ रही है | आइये कुछ आंकड़ों पर नजर डालते है -

01 आबादी (जनसँख्या) - भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि सन 1951 में भारत की आबादी करीब 33 करोड़ थी जो सन 2010 तक 118 करोड़ हो गई |
02 सन 1951 में पूरे भारत में 4780 डॉक्टर थे, जो सन 2010 तक बढ़कर करीब 18,00,000 (18 लाख) हो गए |
03 सन 1947 में भारत में एलोपेथी दवा बनाने वाली कम्पनियाँ करीब 10-12 कंपनिया हुवा करती थी जो आज बढ़कर करीब 20 हजार हो गई है |
04 सन 1951 में पूरे भारत में करीब 70 प्रकार की दवाइयां बिका करती थी और आज ये दवाइयां बढ़कर करीब 84000 (84 हजार) हो गई है |
05 सन 1951 में भारत में बीमार लोगों की संख्या करीब 5 करोड़ थी आज बीमार लोगों की तादाद करीब 100 करोड़ हो गई है |

हमारी भारत सरकार ने पिछले 64 सालों में अस्पताल पर, दवाओ पर, डॉक्टर और नर्सों पर, ट्रेनिंग वगेराह वगेरह में सरकार ने जितना खर्च किया उसका 5 गुना यानी करीब 50 लाख करोड़ रूपया खर्च कर चुकी है| आम जनता ने जो अपने इलाज के लिए पैसे खर्च किये वो अलग है | आम जनता का लगभग 50 लाख करोड़ रूपया बर्बाद हुवा है पिछले 64 सालों में इलाज के नाम पर, बिमारियों के नाम पर |

इतना सारा पैसा खर्च करने के बाद भी भारत में रोग और बीमारियाँ बढ़ी है |

01) हमारे देश में आज करीब 5 करोड़ 70 लाख लोग dibities (मधुमेह) के मरीज है | (भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि करीब 3 करोड़ लोगों को diabities होने वाली है |
02) हमारे देश में आज करीब 4 करोड़ 80 लाख लोग ह्रदय रोग की विभिन्न रोगों से ग्रसित है |
03) करीब 8 करोड़ लोग केंसर के मरीज है | भारत सरकार कहती है की 25 लाख लोग हर साल केंसर के कारण मरते है |
04) 12 करोड़ लोगों को आँखों की विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ है |
05) 14 करोड़ लोगों को छाती की बीमारियाँ है |
06) 14 करोड़ लोग गठिया रोग से पीड़ित है |
07) 20 करोड़ लोग उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure ) और निम्न रक्तचाप (Low Blood Pressure ) से पीड़ित है |
08) 27 करोड़ लोगों को हर समय 12 महीने सर्दी, खांसी, झुकाम, कोलेरा, हेजा आदि सामान्य बीमारियाँ लगी ही रहती है |
09) 30 करोड़ भारतीय महिलाएं अनीमिया की शिकार है | एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी | महिलाओं में खून की कमी से पैदा होने वाले करीब 56 लाख बच्चे जन्म लेने के पहले साल में ही मर जाते है | यानी पैदा होने के एक साल के अन्दर-अन्दर उनकी मृत्यु हो जाती है | क्यों कि खून की कमी के कारण महिलाओं में दूध प्रयाप्त मात्र में नहीं बन पाता| प्रति वर्ष 70 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार होते है | कुपोषण के मायने उनमे खून की कमी, फास्फोरस की कमी, प्रोटीन की कमी, वसा की कमी वगेरह वगेरह .......

ऊपर बताये गए सारे आंकड़ों से एक बात साफ़ तौर पर साबित होती है कि भारत में एलोपेथी का इलाज कारगर नहीं हुवा है | एलोपेथी का इलाज सफल नहीं हो पाया है| इतना पैसा खर्च करने के बाद भी बीमारियाँ कम नहीं हुई बल्कि और बढ़ गई है | यानी हम बीमारी को ठीक करने के लिए जो एलोपेथी दवा खाते है उससे और नई तरह की बीमारियाँ सामने आने लगी है |

पहले मलेरिया हुवा करता था | मलेरिया को ठीक करने के लिए हमने जिन दवाओ का इस्तेमाल किया उनसे डेंगू, चिकनगुनिया और न जाने क्या क्या नई नई तरह की बुखारे बिमारियों के रूप में पैदा हो गई है | किसी ज़माने में सरकार दावा करती थी की हमने चिकंपोक्ष (छोटी माता और बड़ी माता) और टी बी जैसी घातक बिमारियों पर विजय प्राप्त कर ली है लेकिन हाल ही में ये बीमारियाँ फिर से अस्तित्व में आ गई है, फिर से लौट आई है| यानी एलोपेथी दवाओं ने बीमारियाँ कम नहीं की और ज्यादा बधाई है |

एक खास बात आपको बतानी है की ये अलोपेथी दवाइयां पहले पूरे संसार में चलती थी जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, फ़्रांस, आदि | हमारे देश में ये एलोपेथी इलाज अंग्रेज लाये थे | हम लोगों पर जबरदस्ती अंग्रेजो द्वारा ये इलाज थोपा गया | द्वितीय विश्व युद्ध जब हुवा था तक रसायनों का इस्तेमाल घोला बारूद बनाने में और रासायनिक हथियार बनाने में हुवा करता था | जब द्वितीय विश्वयुध में जापान पर परमाणु बम गिराया गया तो उसके दुष्प्रभाव को देख कर विश्व के कई प्रमुख देशों में रासायनिक हथियार बनाने वाली कम्पनियाँ को बंद करवा दी गई| बंद होने के कगार पर खड़ी इन कंपनियों ने देखा की अब तो युद्ध खत्म हो गया है | अब इनके हथियार कौन खरीदेगा | तो इनको किसी बाज़ार की तलाश थी | उस समय सन 1947 में भारत को नई नई आजादी मिली थी और नई नई सरकार बनी थी| यहाँ उनको मौका मिल गया| और आप जानते है की हमारे देश को आजाद हुवे एक साल ही गुजरा था की भारत का सबसे पहला घोटाला सन 1948 में हुवा था सेना की लिए जीपे खरीदी जानी थी | उस समय घोटाला हुवा था 80 लाख का | यांनी धीरे धीरे ये दावा कम्पनियां भारत में व्यापार बढाने लगी और इनके व्यापार को बढ़ावा दिया हमारी सरकारों ने| ऐसा इसलिए हुवा क्यों की हमारे नेताओं को इन दावा कंपनियों ने खरीद लिया| हमारे नेता लालच में आ गए और अपना व्यापार धड़ल्ले से शुरू करवा दिया | इसी के चलते जहाँ हमारे देश में सन 1951 में 10 -12 दवा कंपनिया हुवा करती थी वो आज बढ़कर 20000 से ज्यादा हो गई है | 1951 में जहाँ लगभग 70 कुल दवाइयां हुवा करती थी आज की तारिख में ये 84000 से भी ज्यादा है | फिर भी रोग कम नहीं हो रहे है, बिमारियों से पीछा नहीं छूट रहा है |

आखिर सवाल खड़ा होता है कि इतनी सारे जतन करने के बाद भी बीमारियाँ कम क्यों नहीं हो रही है | इसकी गहराई में जाए तो हमे पता लगेगा कि मानव के द्वारा निर्मित ये दवाए किसी भी बीमारी को जड़ से समाप्त नहीं करती बल्कि उसे कुछ समय के लिए रोके रखती है| जब तक दवा का असर रहता है तब तक ठीक, दवा का असर खत्म हुवा बीमारियाँ फिर से हावी हो जाती है | दूसरी बात इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट बहुत ज्यादा है | यानी एक बीमारी को ठीक करने के लिए दवा खाओ तो एक दूसरी बीमारी पैदा हो जाती है | आपको कुछ उदहारण दे के समझाता हु -

01) Entipiratic बुखार को ठीक करने के लिए हम एन्तिपैरेतिक दवाएं खाते है जैसे - पेरासिटामोल, आदि | बुखार की ऐसी सेकड़ो दवाएं बाजार में बिकती है | ये एन्तिपिरेटिक दवाएं हमारे गुर्दे ख़राब करती है | गुर्दा ख़राब होने का सीधा मतलब है की पेसाब से सम्बंधित कई बीमारियाँ पैदा होना जैसे पथरी, मधुमेह, और न जाने क्या क्या| एक गुर्दा खराब होता है उसके बदले में नया गुर्दा लगाया जाता है तो ऑपरेशन का खर्चा करीब 3.50 लाख रुपये का होता है |
02 ) Antidirial इसी तरह से हम लोग दस्त की बीमारी में Antidirial दवाए खाते है | ये एन्तिदिरल दवाएं हमारी आँतों में घाव करती है जिससे केंसर, अल्सर, आदि भयंकर बीमारियाँ पैदा होती है |
03 ) Enaljesic इसी तरह हमें सरदर्द होता है तो हम एनाल्जेसिक दवाए खाते है जैसे एस्प्रिन , डिस्प्रिन , कोल्द्रिन और भी सेकड़ों दवाए है | ये एनाल्जेसिक दवाए हमारे खून को पतला करती है | आप जानते है की खून पतला हो जाये तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और कोई भी बीमारी आसानी से हमारे ऊपर हमला बोल सकती है |

आप आये दिन अखबारों में या टी वी पर सुना होगा की किसी का एक्सिडेंट हो जाता है तो उसे अस्पताल ले जाते ले जाते रस्ते में ही उसकी मौत हो जाती है | समज में नहीं आता कि अस्पताल ले जाते ले जाते मौत कैसे हो जाती है ? होता क्या है कि जब एक्सिडेंट होता है तो जरा सी चोट से ही खून शरीर से बहार आने लगता है और क्यों की खून पतला हो जाता है तो खून का थक्का नहीं बनता जिससे खून का बहाव रुकता नहीं है और खून की कमी लगातार होती जाती है और कुछ ही देर में उसकी मौत हो जाती है |

पिछले करीब 30 से 40 सालों में कई सारे देश है जहाँ पे ऊपर बताई गई लगभग सारी दवाएं बंद हो चुकी है | जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, और भी कई देश में जहा ये दवाए न तो बनती और न ही बिकती है| लेकिन हमारे देश में ऐसी दवाएं धड़ल्ले से बन रही है, बिक रही है| इन 84000 दवाओं में अधिकतर तो ऐसी है जिनकी हमारे शरीर को जरुरत ही नहीं है | आपने विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO का नाम सुना होगा| ये दुनिया कि सबसे बड़ी स्वास्थ्य संस्था है | WHO
कहता है कि भारत में ज्यादा से ज्यादा केवल 350 दवाओं की आवश्यकता है | अधितम केवल 350 दवाओं की जरुरत है, और हमारे देश में बिक रही है 84000 दवाएं | यानी जिन दवाओं कि जरूरत ही नहीं है वो डॉक्टर हमे खिलते है क्यों कि जितनी ज्यादा दवाए बिकेगी डॉक्टर का कमिसन उतना ही बढेगा|

फिर भी डॉक्टर इस तरह की दवाए खिलते है | मजेदार बात ये है की डॉक्टर कभी भी इन दवाओं का इस्तेमाल नहीं करता और न अपने बच्चो को खिलाता है| ये सारी दवाएं तो आप जैसे और हम जैसे लोगों को खली जाती है | वो ऐसा इसलिए करते है क्यों कि उनको इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट पता होता है | और कोई भी डॉक्टर इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट के बारे में कभी किसी मरीज को नहीं बताता| अगर भूल से पूछ बैठो तो डॉक्टर कहता है कि तुम ज्यादा जानते हो या में?
दूसरी और चोकने वाली बात ये है कि ये दवा कंपनिया बहुत बड़ा कमिसन देती है डॉक्टर को| यानी डॉक्टर कमिशनखोर हो गए है या यूँ कहे की डॉक्टर दवा कम्पनियों के एजेंट हो गए है तो गलत ना होगा |

आपने एक नाम सुना होगा M.R. यानि मेडिकल Represetative | ये नाम अभी हाल ही में कुछ वर्षो में ही अस्तित्व में आया है| ये MR नाम का बड़ा विचित्र प्राणी है | ये कई तरह की दवा कम्पनियों की दवाएं डॉक्टर के पास ले जाते है और इन दवाओं को बिकवाते है | ये दवा कंपनिया 40 40% तक कमिसन डॉक्टर को सीधे तौर पर देती है | जो बड़े बड़े शहरों में दवा कंपनिया है नकद में डॉक्टर को कमिसन देती है | ऑपरेशन करते है तो उसमे कमिसन खाते है, एक्सरे में कमिसन, विभिन्न प्रकार की जांचे करवाते है डॉक्टर , उमने कमिसन | सबमे इनका कमिसन फिक्स रहता है | जिन बिमारियों में जांचों की कोई जरुरत ही नहीं होती उनमे भी डॉक्टर जाँच करवाने के लिए लिख देते है ये जाँच कराओ वो जाँच करो आदि आदि | कई बीमारियाँ ऐसी है जिसमे दवाएं जिंदगी भर खिलाई जाती है | जैसे हाई ब्लड प्रेसर या लो ब्लड प्रेस्सर, daibities आदि | यानी जब तक दवा खाओगे आपकी धड़कन चलेगी | दवाएं बंद तो धड़कन बंद | जितने भी डॉक्टर है उनमे से 99 % डॉक्टर कमिसंखोर है | केवल 1 % इमानदार डॉक्टर है जो सही मायने में मरीजो का सही इलाज करते है |

सारांस के रूप में हम कहे की मौत का खुला व्यापार धड़ल्ले से पूरे भारत में चल रहा है तो कोई गलत नहीं होगा|

पूरी दुनिया में केवल २ देश है जहाँ आयुर्वेदिक दवाएं भरपूर मात्र में मिलती है (1) भारत (2) चीन
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व्यवस्था परिवर्तन

पिछले 63 सालों से हम सरकारे बदल-बदल कर देख चुके है..................... हर समस्या के मूल में मौजूदा त्रुटिपूर्ण संविधान है, जिसके सारे के सारे कानून / धाराएँ अंग्रेजो ने बनाये थे भारत की गुलामी को स्थाई बनाने के लिए ...........इसी त्रुटिपूर्ण संविधान के लचीले कानूनों की आड़ में पिछले 63 सालों से भारत लुट रहा है ............... इस बार सरकार नहीं बदलेगी ...................... अबकी बार व्यवस्था परिवर्तन होगा...................

अधिक जानकारी के लिए रोजाना रात 8 .00 बजे से 9 .00 बजे तक आस्था चेंनल और रात 9 .00 बजे से 10 .00 बजे तक संस्कार चेनल देखिये

जागो भारतवासियों दूसरा स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो गया है ...

भारत के पास इतना वक़्त नहीं है अब. ये सुझाव वुझाव की बातें छोड़ो और कुछ नए कानून बनाओ. जिसमे कुछ बातें इस तरह की हो :- (01) अभी जितने भी आयोग बने है सब राजनेताओ कि कठपुतलियां है और इनके इशारो पर काम करते है जैसे सीबीआई , केंद्रीय सतर्कता आयोग, भ्रस्टाचार निरोधक ब्यूरो (Anti Corruption Beuro ), ये सब आयोग और ब्यूरो केवल दिखाने के लिए बनाये गए है. ताकि भारत कि जनता को उल्लू बनाया जा सके और राजनेता और अफसर अपना स्वयं का उल्लू सीधा करते रहे. एक स्वतंत्र आयोग का गठन करो जो सेल्फ डिसीजन ले सके. जो गवर्नमेंट या पोलिटिकल लीडर्स की कठपुतली नहीं बने.
(02) दूसरा काम ये करो रेसेर्वे बैंक से करेंसी चेंज करवाओ, जब करेंसी चेंज होगी तो वर्तमान में जितने भी नोट है वो केवल कागज हो जायेंगे, यानि किसी काम के नहीं रहेंगे, फिर एक अभियान चला कर पुराने नोट को कलेक्ट करो उसके बदले नई करेंसी के नोट जनता को दो. अगर ऐसा नहीं कर सकते तो बड़े नोटों को वापस लो और इसके बदले छोटे नोट बाज़ार में उतारो. 100 रुपये से बड़ा नोट नहीं होना चाहिए
(03) हर भ्रस्ट व्यक्ति को अधिकतम एक महीने के अन्दर अन्दर मौत की सजा का प्रावधान हो. अगर मौत नहीं भी दो तो कम से कम आजीवन सश्रम कारावास की सजा एक महीने के अन्दर मिले. और भ्रस्टाचारी की सारी संपत्ति कुर्क करके जितना भी घोटाला किया है उसको 15 दिन के अन्दर अन्दर उससे घोटाले की संपूर्ण रकम को जब्त किया जाये, चाहे उसने घोटाले की रकम को पाताल में ही क्यों न छिपाया हो , उससे छीन लिया जाये.
(04) हर भारतीय नागरिक के पास अधिकतम संपत्ति रखने का कानून बने. जैसे की कोई भी भारतीय नागरिक 10 करोड़ या 20 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति का मालिक नहीं हो सकता, चाहे वो प्रशाशनिक अधिकारी हो , कोई राजनेता हो , या कोई आम नागरिक हो. अगर निर्धारित संपत्ति के अलावा किसी भी प्रकार की संपत्ति / धन /माल पाया जाता है तो उसको जब्त करके राजकोष में शामिल करो.
(05) एक "प्रजा अधीन रजा" का कानून यानी (Right To Recall ) यानी एक ऐसा कानून बने जिसके तहत यदि कोई राजनेता कोई घोटाला करता है या अफसर घोटाला या रिश्वत लेता है तो उसे अपनी कुर्शी से हटाने का काम जनता स्वयं करेगी. आपको सुनकर हेरानी होगी कि हिंदुस्तान सन 1947 में आजाद हुवा और मात्र 1 साल बाद यानी 1948 में हिन्दुस्तान के पहले घोटाले को अंजाम दे डाला. और ये घोटाला उस 80 लाख रुपाए का था. जिस व्यक्ति ने ये घोटाला किया उसका नाम था वी के कृष्णा मेनन जिसे हमारे प्रथम प्रधानमन्त्री नेहरु ने सन 1955 में केबिनेट मंत्री के सिंहासन पर बैठा दिया था.

कांग्रेस की वर्तमान सरकार के कार्यकाल में अब तक 5 घोटाले सामने आ चुके है. (1) कोमन वेल्थ घोटाला (200 करोड़ का), (2) 2G स्पेक्ट्रुम घोटाला (1.79 लाख करोड़) , (3) आदर्श हौसिंग घोटाला (4) मेरठ छावनी जमीन घोटाला (5000 करोड़) , (5) इंदौर और भोपाल का बिल्डर, प्रशासन और नेताओ के बीच काले धन का घोटाला (करीब 300 करोड़ नकद , 15000 फाइलें और 500 अज्ञात बैंक खाते जिनमे अरबों रुपये होने कि आशंका है.


यानी एक रिपोर्ट के मुताबिक सन 1948 से लेकर 2005 तक करीब 35 घोटालों को अंजाम दिया जा चूका है. और इन 35 घोटालों में एक भी व्यक्ति को ना तो कभी सजा हुई और ना ही गबन किया हुवा एक रूपया वापस आया. इन 35 घोटालों का लाखों करोड़ रुपया कहा गया ................

मुखर्जी साहेब आप कह रहे है कि 4 संस्थानों से इस सम्बन्ध में सुझाव मांगे जायेंगे जिसमे करीब एक साल का वक़्त लगेगा. ये वक़्त सुझाव मांगने का नहीं है. ऊपर दिए गए सभी कानून बनाकर उन्हें अप्रैल 2011 से पहले लागु करने का है. अब पानी सर से ऊपर निकल चूका है. ये घोटाले करके जो भारत का पैसा विदेश में भिजवा देते है या हजम कर जाते है ये पैसा उनके बाप का नहीं है. ये पैसा उस भारतीय के खून पसीने कि कमाई का है जो वो मेहनत करता है.


... और तुम्हारी कांग्रेस सरकार J.P.C. (संयुक्त संसदीय समिति) से इन घोटालों कि जाँच क्यो नहीं करवाना चाहती? तुम्हे प्रॉब्लम क्या है? हरामियों समय रहते अभी जाँच करवा लो नहीं तो भारत का आम नागरिक उठ खड़ा हुवा तो सारी राजनेतिक पार्टियाँ हिंदुस्तान का इतिहास मात्र हो जाएगी और तुम्हे अपनी जान बचाने का मौका तक नहीं मिल पायेगा.

क्या आप जानते है इंडिया का वह स्थान जहाँ सबसे सस्ता भोजन उपलब्ध है ? ............

चाय = 1 रूपया प्रति चाय

सूप = 5.50 रुपये

दाल = 1.50 रूपया

शाकाहारी थाली (जिसमे दाल, सब्जी 4 चपाती चावल/पुलाव, दही, सलाद) = 12.50 रुपये

मांसाहारी थाली = 22 रुपये

दही चावल = 11 रुपये

शाकाहारी पुलाव = 8 रुपये

चिकेन बिरयानी = 34 रुपये

फिश कर्री और चावल = 13 रुपये

राजमा चावल = 7 रुपये

टमाटर चावल = 7 रुपये

फिश करी = 17 रुपये

चिकन करी = 20 .50 रुपये

चिकन मसाला = 24 .50 रुपये

बटर चिकन = 27 रुपये

चपाती = 1 रूपया प्रति चपाती

एक पलते चावल = 2 रुपये

डोसा = 4 रुपये

खीर = 5.50 रुपये प्रति कटोरी

फ्रूट केक = 9 .50 रुपये

फ्रूट सलाद = 7 रुपये

यह वास्तविक मूल्य सूची है

ऊपर बताई गई सारी मदें " गरीब लोगों " के लिए है जो केवल और केवल भारत के संसद की केन्टीन में ही उपलब्ध है. ............. और इन गरीब लोगों की तनख्वाह 80,000 रुपये प्रति माह है . ......................... इसके अलावा इन्हें बोनस के रूप में भारी से भारी घोटाले करके अरबों - खरबों रुपये हडपने की खुल्ली छूट है .

.............. और ये सारा का सारा पैसा पब्लिक की जेब से जाता है जिसे हम और आप टैक्स के रूप में चुकाते है.....................................

लोकतंत्र के नाम पर षड्यंत्र 64 सालो से ........... क्या कभी घौर किया हमने ?........

हम फिर आ गए हवा के ताजे झोंके की तरह। इस बीच कुछ भी नहीं बदला। बदला है तो बस कैलेंडर का फड़फड़ाता पन्ना। एक बार फिर ‘गण’ की सवारी करने के लिए तिरंगा हाथ में लेकर ‘तंत्र’ आ गया। गणतंत्र दिवस पर ‘गण’ गुनगुनाएगा ‘‘जन-गण-मन अधिनायक जय हे! भारत भाग्य विधाता।’’ कौन है और कैसा है ये भारत का यह ‘जन-गण-मन’ और हम क्यों अधिनायक की जय कर रहा है? ‘अधिनायक’ यानी तानाशाह की जय जहां होगी, वहां फिर लोकतंत्र कैसा? दर्शन शास्त्र की दो विधाएं हैं- नीतिशास्त्र और तर्कशास्त्र। तर्कशास्त्र का सिद्धांत है कि ‘‘जब आधार वाक्य ही गलत होगा तो निष्कर्ष सदैव भ्रामक निकलेंगे।’’ यही हो रहा है हमारे राष्ट्रगान के साथ। इसका आधार वाक्य ‘जन-गण-मन अधिनायक जय हो’ ही गलत है तो निष्कर्ष भी भ्रामक ही होगा। निष्कर्ष से यहां अभिप्राय ‘जनादेश’ से है। गुजरे 64 सालों में भारतीय ‘जन-गण-मन’ की कमर ‘तंत्र’ की तानाशाही ने तोड़ दी है और अधिनायक की जय-जयकार करते हुए देश में खलनायक तो खूब हैं पर ‘लोकनायक’ या ‘जननायक’ के जन्म की संभावना भी शेष नहीं है।

स्वतंत्र होने के बाद देश का वातावरण ऐसा नहीं रहा कि इस तरह के एक भी प्रतीक चरित्र यह राष्ट्र पैदा कर पाता। परिणाम कि गुलाम भारत के युवाओं के प्रतीक सुभाष होते थे तो आज शाहरुख खान हैं। आज देश का युवा अब महात्मा गांधी, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसा नहीं बनना चाहता। वह इस छल को जान चुका है कि राष्ट्र के लिए खून देने वाले लोग इस राष्ट्र के अधिनायकवादी तंत्र द्वारा भुला दिए जाते हैं और याद किए जाते हैं वह लोग जिनके बाप- दादे अंग्रेजों के समय चाटुकारिता कर रायबहादुर, राय साहब बने थे और आज भी आनंद में ओत-प्रोत हैं। रानी लक्ष्मीबाई के किसी वंशज का कहीं कोई पता है? वह भारत की स्वतंत्रता सेनानी थी इसीलिए। लेकिन ‘सिंधिया’ को सभी जानते हैं, जबकि इस खानदान द्वारा अंग्रेजों की तरफदारी करके रानी झांसी लक्ष्मीबाई को मरवा दी थीं।

माधवराव सिंधिया सत्ता भोगे और छोड़ गए अपने पीछे ज्योतिरादित्य सिंधिया। उधर राजस्थान में भी वसुंधरा राजे सिंधिया भाजपा की कृपा से मुख्यमंत्री पद भोग चुकी हैं और यशोधरा राजे सिंधिया भी ‘जन-गण-मन’ की छाती पर सवार हैं। रामप्रसाद बिस्मिल की बहन शाहजहांपुर में चाय की गुमटी लगाए अगर उदास आंखों से तिरंगा देखती हैं तो देखा करें। बिठूर में नाना फड़नवीस और तात्या टोपे के खानदानियों का कोई पुरसाहाल नहीं है। तो ‘अधिनायक जय हो’ करते करते हमने किस ‘भारत’ के कौन से ‘भाग्य विधाता’ बना डाले? यह तो भारत के भाग्यविधाता है राहुल, प्रियंका, ज्योतिरादित्य और जितिन जैसे लोगों का।

फिर भी लोकतंत्र के नाम पर षड्यंत्र करते हुए जो खलनायक ‘अधिनायक’ बन बैठे उन पर हमने कभी गौर किया? सत्ता के सभी अंग- न्यायपालिका, व्यवस्थापिका, कार्यपालिका अपनी-अपनी सुविधाओं की तानाशाही पर आमादा होकर ‘अधिनायक जय हो’ कर रहे हैं। न्यायपालिका का चेहरा भ्रष्टाचार के आरोपों से आक्रांत दिख रहा है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के जज अपनी संपत्ति सार्वजनिक करने से कतरा रहे हैं। कामनवेल्थ गेम, 2जी स्पेक्ट्रम, आदर्श घोटाला जैसे सुनियोजित घोटाले भी अब उजागर हो रहे हैं। मुलायम सिंह - अमर सिंह की कृपा से सर्वोच्च न्यायालय का एक मुख्य न्यायाधीश अगर नोएडा में बेशकीमती जमीनें पा जाता है तो दिनाकरन मुद्दे पर दूसरे खुलकर जातिवादी कार्ड खेलते नजर आ रहे हैं। वैसे भी ‘न्याय’ नागरिक को मुफ्त में तो नहीं मिलता। लेकिन अवमानना का कानून हमें बोलने और पूछने से रोकता है। अब भला जज साहब से यह कौन पूछे कि- आप के पास आय के ज्ञात स्त्रोत से अधिक पैसा कैसे आया? कभी सुना है कि किन्हीं जज साहब के यहां आयकर का छापा? यह थी न्यायपालिका के अधिनायक की जय। व्यवस्थापिका और विधायिका के अधिनायक की जय की भी बात हो जाए। लालकिले के प्राचीर पर खड़े होकर संपूर्ण राष्ट्र को अपने आगे नतमस्तक देखने वाली प्रतिभा पाटिल का नाम ‘सोनिया कृपा’ के पहले कितनों ने सुना था और सुना भी था तो क्यों? चिटफंड की धोखाधड़ी, चीनी मिल सहकारी समितियों की हेरा- फेरी की फेहरिस्त उतनी ही लंबी है जितना उनका वैभव। किन्तु आज वह राष्ट्रपति हैं- हुई न अधिनायक की जय। मुंडा हो, गुंडा हों, रेड्डी हों या गुरुजी सभी जगह खलनायक अधिनायक बनते प्रतीत हो रहे हैं और यह मनमोहन सिंह नामक प्रधानमंत्री ईवीएम की वैध संतान है या लोकतंत्र के प्रयोग का परखनली शिशु यह तो बताओ हे मतदाता! तुम्हें पता है सब, फिर खामोश क्यों हो?

कांग्रेस ने 60 वर्ष तक के शासनकाल में महात्मा गाँधी की आड़ में देश को लूटने का पूरा इंतज़ाम किया

जिस देश का कानून ही भ्रष्टाचारियो के हाथो से बनता हो वहा ऐसी धटना होना अप्रत्याशित नहीं । कांग्रेस ने 55 वर्ष तक के शासनकाल में महात्मा गाँधी की आड़ में देश को लूटने का पूरा इंतज़ाम किया ।और भ्रस्ट शासन तंत्र विकसित किया ।अब ऐसे हादसों से निपटने का अनुभव भी उसके साथ हैभोपाल गैस कांड इसका सबसे अच्छा उदहारण है ।विदेशो में जमा कला धन इसी शासन तंत्र का नतीजा है। तभी तो प्रणव मुखर्जी माफी योजना पर विचार कर रहे हैं ।आखिर चोरो से इन्हें हिस्सा भी मिलता है और मदद भी ।पोल तो इनकी भी खुलेगी। बाकी राजनैतिक पार्टियों के चोर भी यही चाहेंगे । कोई दूध का धुला नहीं अतः इस मुद्दे पर बहुमत भी मिल जायेगा । यही तो भारत का लोकतंत्र है। चोरो और भ्रष्टाचारियो का अपना लोकतंत्र। इस देश के चंद ईमानदार लोगो को अपने लोगो के बहुमत का इंतजार करना चाहिए नहीं तो उनका अंजाम यही होगा ।

जिस देश का प्रधानमंत्री खुद ही कहता हो के , विकास के काम के लिए दिए 100 रूपये में से 86 रूपये मै और मेरे आदमी खा जाते हे और जनता तक सिर्फ 14 हम लोगो तक पहुंचाते हे , उस देश का कुछ नहीं हो सकता . बजाये प्रधानमंत्री को इस बयाँ के लिए धिक्कारने के , मीडिया उसकी प्रसंशा करता हे के , वो अपनी नालायकी सवीकार रहा हे . धन्य हो हिंदुस्तान

बिकाऊ है भारत सरकार, बोलो खरीदोगे ?

पहले आयकर विभाग में काम किया करता था। 90 के दशक के अंत में आयकर विभाग ने कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों का सर्वे किया। सर्वे में ये कंपनियां रंगे हाथों टैक्स की चोरी करते पायी गयीं, उन्होंने सीधे अपना जुर्म कबूल किया और बिना कोई अपील किये सारा टैक्स जमा कर दिया। अगर ये लोग किसी और देश में होते तो अभी तक उनके वरिष्ठ अधिकारियों को जेल भेज दिया गया होता। ऐसी ही एक कम्पनी पर सर्वे के दौरान उस कम्पनी के विदेशी मुखिया ने आयकर टीम को धमकी दी – ‘‘भारत एक बहुत गरीब देश है। हम आपके देश में आपकी मदद करने आये हैं। आपको पता नहीं हम कितने ताकतवर हैं। हम चाहें तो आपकी संसद से कोई भी कानून पारित करा सकते हैं। हम आप लोगों का तबादला भी करा सकते हैं।’’ इसके कुछ दिन बाद ही इस आयकर टीम के एक हेड का तबादला कर दिया गया।
उस वक्त विदेशी की बातों पर ज्यादा गौर नहीं किया। सोचा कि शायद वो आयकर सर्वे से परेशान होकर बोल रहा था, लेकिन पिछले कुछ सालों से धीरे-धीरे उसकी बातों में सच्चाई नजर आने लगी है।
जुलाई 2008 में यू.पी.ए. सरकार को संसद में अपना बहुमत साबित करना था। खुलेआम सांसदों की खरीद-फरोख्त चल रही थी। कुछ टी.वी. चैनलों ने सांसदों को पैसे लेकर खुलेआम बिकते दिखाया। उन तस्वीरों ने इस देश की आत्मा को हिला दिया। अगर सांसद इस तरह से बिक सकते हैं तो हमारे वोट की क्या कीमत रह जाती है। जिस किसी सांसद को वोट करे, जीतने के बाद वह पैसे के लिए किसी भी पार्टी में जा सकता है। दूसरे, आज अपनी सरकार बचाने के लिए इस देश की एक पार्टी उन्हें खरीद रही है। कल को उन्हें कोई और देश भी खरीद सकता है। जैसे अमरीका, पाकिस्तान इत्यादि। हो सकता है ऐसा हो भी रहा हो, किसे पता? यह सोच कर पूरे शरीर में सिहरन दौड़ पड़ी- क्या हम एक आजाद देश के नागरिक हैं? क्या हमारे देश की संसद सभी कानून इस देश के लोगों के हित के लिए ही बनाती है?
अभी कुछ दिन पहले जब अखबारों में संसद में हाल ही में प्रस्तुत न्यूक्लीयर सिविल लायबिलिटी बिल के बारे में पढ़ा तो सभी डर सच साबित होते नजर आने लगे। यह बिल कहता है कि कोई विदेशी कम्पनी भारत में अगर कोई परमाणु संयंत्र लगाती है और यदि उस संयंत्र में कोई दुर्घटना हो जाती है तो उस कम्पनी की जिम्मेदारी केवल 1500 करोड़ रुपये तक की होगी। दुनियाभर में जब भी कभी परमाणु हादसा हुआ तो हजारों लोगों की जान गयी और हजारों करोड़ का नुकसान हुआ।
भोपाल गैस त्रासदी में ही पीड़ित लोगों को अभी तक 2200 करोड़ रुपया मिला है जो कि काफी कम माना जा रहा है। ऐसे में 1500 करोड़ रुपये तो कुछ भी नहीं होते। एक परमाणु हादसा न जाने कितने भोपाल के बराबर होगा? इसी बिल में आगे लिखा है कि उस कम्पनी के खिलाफ कोई आपराधिक मामला भी दर्ज नहीं किया जायेगा और कोई मुकदमा नहीं चलाया जायेगा। कोई पुलिस केस भी नहीं होगा। बस 1500 करोड़ रुपये लेकर उस कम्पनी को छोड़ दिया जायेगा।
यह कानून पढ़कर ऐसा लगता है कि इस देश के लोगों की जिन्दगियों को कौड़ियों के भाव बेचा जा रहा है। साफ-साफ जाहिर है कि यह कानून इस देश के लोगों की जिन्दगियों को दांव पर लगाकर विदेशी कम्पनियों को फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। हमारी संसद ऐसा क्यों कर रही है? यकीनन या तो हमारे सांसदों पर किसी तरह का दबाव है या कुछ सांसद या पार्टियां विदेशी कम्पनियों के हाथों बिक गयी हैं।
भोपाल गैस त्रासदी के हाल ही के निर्णय के बाद अखबारों में ढेरों खबरें छप रही हैं कि किस तरह भोपाल के लोगों के हत्यारे को हमारे देश के उच्च नेताओं ने भोपाल त्रासदी के कुछ दिनों के बाद ही राज्य अतिथि सा सम्मान दिया था और उसे भारत से भागने में पूरी मदद की थी।
इस सब बातों को देखकर मन में प्रश्न खड़े होते हैं—क्या भारत सुरक्षित हाथों में है? क्या हम अपनी जिन्दगी और अपना भविष्य इन कुछ नेताओं और अधिकारियों के हाथों में सुरक्षित देखते हैं?
ऐसा नहीं है कि हमारी सरकारों पर केवल विदेशी कम्पनियों या विदेशी सरकारों का ही दबाव है। पैसे के लिए हमारी सरकारें कुछ भी कर सकती हैं। कितने ही मंत्री और अफसर औद्योगिक घरानों के हाथ की कठपुतली बन गये हैं। कुछ औद्योगिक घरानों का वर्चस्व बहुत ज्यादा बढ़ गया है। अभी हाल ही में एक फोन टैपिंग मामले में खुलासा हुआ था कि मौजूदा सरकार के कुछ मंत्रियों के बनने का निर्णय हमारे प्रधानमंत्री ने नहीं बल्कि कुछ औद्योगिक घरानों ने लिया था। अब तो ये खुली बात हो गयी है कि कौन सा नेता या अफसर किस घराने के साथ है। खुलकर ये लोग साथ घूमते हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि कुछ राज्यों की सरकारें और केन्द्र सरकार के कुछ मंत्रालय ये औद्योगिक घराने ही चला रहे हैं।
यही कारण है कि हमारे देश की खदानों को इतने सस्ते में इन औद्योगिक घरानों को बेचा जा रहा है। जैसे आयरन ओर की खदानें लेने वाली कम्पनियां सरकार को महज 27 रुपये प्रति टन रॉयल्टी देती हैं। उसी आयरन ओर को ये कम्पनियां बाजार में 6000 रुपये प्रति टन के हिसाब से बेचती हैं। क्या यह सीधे-सीधे देश की सम्पत्ति की लूट नहीं है?
इसी तरह से औने-पौने दामों में वनों को बेचा जा रहा है, नदियों को बेचा जा रहा है, लोगों की जमीनों को छीन-छीन कर कम्पनियों को औने-पौने दामों में बेचा जा रहा है।
इन सब उदाहरणों से एक बात तो साफ है कि इन पार्टियों, नेताओं और अफसरों के हाथ में हमारे देश के प्राकृतिक संसाधन और हमारे देश की सम्पदा खतरे में है। जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो ये लोग मिलकर सब कुछ बेच डालेंगे।
इन सब को देखकर भारतीय राजनीति और जनतंत्र पर एक बहुत बड़ा सवालिया निशान लगता है। सभी पार्टियों का चरित्र एक ही है। हम किसी भी नेता या किसी भी पार्टी को वोट दें, उसका कोई मतलब नहीं रह जाता।
पिछले 60 सालों में हम हर पार्टी, हर नेता को आजमा कर देख चुके हैं। लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। इससे एक चीज तो साफ है कि केवल पार्टियाँ और नेता बदल देने से बात नहीं बनने वाली। हमें कुछ और करना पड़ेगा।
हम अपने संगठन परिवर्तन के जरिये पिछले दस सालों में विभिन्न मुद्दों पर काम करते रहे हैं। कभी राशन व्यवस्था पर, कभी पानी के निजीकरण पर, कभी विकास कार्यों में भ्रष्टाचार को लेकर इत्यादि। आंशिक सफलता भी मिली। लेकिन जल्द ही यह आभास होने लगा कि यह सफलता क्षणिक और भ्रामक है। किसी मुद्दे पर सफलता मिलती जब तक हम उस क्षेत्र में उस मुद्दे पर काम कर रहे होते, ऐसा लगता कि कुछ सुधार हुआ है। जैसे ही हम किसी दूसरे मुद्दे को पकड़ते, पिछला मुद्दा पहले से भी बुरे हाल में हो जाता। धीरे-धीरे लगने लगा कि देश भर में कितने मुद्दों पर काम करेंगे, कहां-कहां काम करेंगे। धीरे-धीरे यह भी समझ में आने लगा कि इस सभी समस्याओं की जड़ में ठोस राजनीति है। क्योंकि इन सब मुद्दों पर पार्टियां और नेता भ्रष्ट और आपराधिक तत्वों के साथ हैं और जनता का किसी प्रकार का कोई नियंत्रण नहीं है। मसलन राशन की व्यवस्था को ही लीजिए। राशन चोरी करने वालों को पूरा-पूरा पार्टियों और नेताओं का संरक्षण है। यदि कोई राशन वाला चोरी करता है तो हम खाद्य कर्मचारी या खाद्य आयुक्त या खाद्य मंत्री से शिकायत करते हैं। पर ये सब तो उस चोरी में सीधे रूप से मिले हुए हैं। उस चोरी का एक बड़ा हिस्सा इन सब तक पहुंचता है। तो उन्हीं को शिकायत करके क्या हम न्याय की उम्मीद कर सकते हैं। यदि किसी जगह मीडिया का या जनता का बहुत दबाव बनता है तो दिखावे मात्र के लिए कुछ राशन वालों की दुकानें निरस्त कर दी जाती हैं। जब जनता का दबाव कम हो जाता है तो रिश्वत खाकर फिर से वो दुकानें बहाल कर दी जाती हैं।
इस पूरे तमाशे में जनता के पास कोई ताकत नहीं है। जनता केवल चोरों की शिकायत कर सकती है कि कृपया अपने खिलाफ कार्रवाई कीजिए। जो होने वाली बात नहीं है।
सीधे-सीधे जनता को व्यवस्था पर नियंत्रण देना होगा जिसमें जनता निर्णय ले और नेता व अफसर उन निर्णयों का पालन करें।
क्या ऐसा हो सकता है? क्या 120 करोड़ लोगों को कानूनन निर्णय लेने का अधिकार दिया जा सकता है?
वेसे तो जनतंत्र में जनता ही मालिक होती है। जनता ने ही संसद और सरकारों को जनहित के लिए निर्णय लेने का अधिकार दिया है। संसद, विधानसभाओं और सरकारों ने इस अधिकारों का जमकर दुरुपयोग किया है। उन्होंने पैसे खाकर खुलेआम और बेशर्मी से जनता को और जनहित को बेच डाला है और इस लूट में लगभग सभी पार्टियाँ हिस्सेदार हैं। क्या समय आ गया है कि जनता नेताओं, अफसरों और पार्टियों से अपने बारे में निर्णय लेने के अधिकार वापस ले ले?
समय बहुत कम है। देश की सत्ता और देश के साधन बहुत तेजी से देशी-विदेशी कम्पनियों के हाथों में जा रहे हैं। जल्द कुछ नहीं किया गया तो बहुत देर हो चुकी होगी।

क्या आपको पता है ...................... अंग्रेजी मातृभाषा नहीं है . ये हम पर थोपी गई है.

01 क्या आपको पता है ...................... अंग्रेजी मातृभाषा नहीं है . ये हम पर थोपी गई है.

01 सन 1840 में एक अंग्रेज अधिकारी टी .बी . मैकाले द्वारा तैयार किये गए प्रारूप के आधार पर भारत कि आज कि शिक्षा व्यस्था का ढांचा खड़ा हुवा है | मैकाले ने भारत के नागरिकों को आत्मा से अंग्रेज और दीमाग से बाबु (क्लर्क) बनने के लिए ये ढांचा खड़ा किया था |


राजीव जी दीक्षित कहा करते थे कि इस अंग्रेजियत को हिन्दुस्तान से खत्म करो , आज विद्यालयों और विश्वविधालयों में शिक्षा अंग्रेजी में दी जाती है , प्रशाशनिक कार्य अंग्रेजी में होते है , अदालतों में वकीलों और जजों के बीच वार्तालाप होता है अंग्रेजी में , पक्ष और विपक्ष को पता ही नहीं चलता कि दोनों के बीच क्या बात हो रही है और फैसले की कॉपी भी देते है तो अंग्रेजी में और कहते है की पढ़ लो इसे. देश का आम नागरिक, आम मजदूर, आम किसान क्या इसे समजेगा और क्या पढ़ेगा. देश का प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति अपने स्टेटमेंट देते है अंग्रेजी में , संसद में लोकसभा अध्यक्ष बोलते है अंग्रेजी में , सांसद अपने वक्तव्य देते है अंग्रेजी में. अब बताओ जिस देश के 99 प्रतिशत लोग अंग्रेजी नहीं जानते उनके साथ धोखा नहीं हो रहा है ?

हर साल देश में करीब 18 करोड़ बच्चे स्कूलों में दाखिला लेते है और गवर्नमेंट का आंकड़े स्वयं बताते है की 10 वी या 12 वी तक आते आते इनकी संख्या 1 करोड़ से भी कम रह जाती है . और इसका कारण भी यही अंग्रेजी होती है जिसकी वजह से 17 करोड़ बच्चे अपनी पढाई आगे जारी नहीं रख पाते. यानी उन 17 करोड़ बच्चो के साथ जो अन्य्याय होता ही इसी अंग्रेजी की वजह से. आज हर गली में हर मोहल्ले में अंग्रेजी शिक्षा की दूकाने प्राइवेट स्कूल के रूप में खुली हुई है जहाँ नुर्सरी से ही अंग्रेजी सीखना अनिवार्य कर दिया जाता है . क्या है ये सब ??

याद रखो भारतवाशियों कि शिक्षा अगर अपनी मातृभाषा में दी जाये तो बच्चे 3-4 घंटे में कोई भी कविता आसानी से सीख सकता है लेकिन अगर अंग्रेजी में कोई कविता सिखाओ तो उसमे 3-4 महीने तक लग जाते है. मातृभाषा में कही गई बात लोगों को आसानी से समझ में आती है .
हमेशा ये याद रखो की अंग्रेजी मातृभाषा नहीं है . ये भाषा हम पर थोपी गई है.

विदेशी बैंको में जमा भारतीय काले धन को वापस लाने के 4 तरीके ......................

इसके चार तरीके हो सकते है -

01 पहला तरीका थोडा टेढ़ा है | जितनी भी सरकारे जिन्होंने राज किया वो और जो वर्तमान में राज कर रही है वो तो इस काले धन लाएगी नहीं | कोई एक आदमी इसे वापस ला नहीं सकता | सरकारे कभी भी उस काले धन को नहीं लाएगी क्यों कि ये काला धन उन्ही सरकारी तंत्र के नेताओ और अधिकारयों का धन है | सुप्रीम कोर्ट ये काम कर सकता है | सुप्रीम कोर्ट जितने भी काला धन जमा करने वाले है उनकी लिस्ट बनाये और एक साथ उन सभी नेताओ और अधिकारिओं को एक ही दिन में सलाखों के पीछे डाल दे और उन नेताओं और अधिकारियो को सुप्रीम कोर्ट कहे कि आपका जितना भी पैसा विदेशी बैंको में पड़ा है उसे वापस लाओ | यानी ये काला धन उन्ही लोगों से भारत में वापस आये | इससे भारत देश ने जितनी भी संधियाँ विदेशो के साथ कर रखी है वो आड़े नहीं आएगी | क्योंकि जिसने धन जमा करवाया है वही उसे निकाल रहा है तो इसमें उन विदेशी बैंको को कोई आपत्ति नहीं होगी |
फिर संविधान में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा एक नया कानून बनाया जाये जिससे कि भविष्य में भारत का धन काले धन के रूप में बाहर ना जाने पाए.

02 दूसरा तेरीका है कि जितने भी नेता और अधिकारी है उनके विदेशी बैंको के सारे काले धन को सुप्रीम कोर्ट रास्ट्रीय संपत्ति घोषित करे. जब काला धन राष्ट्रीय संपत्ति घोषित हो जाये तो फिर विदेशी सरकारे इसे लोटने से इनकार नहीं कर सकती |

फिर संविधान में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा एक नया कानून बनाया जाये जिससे कि भविष्य में काला धन बाहर ना जाने पाए.

03 तीरारा तरीका ये है कि काला धन उन्ही लोगों से भारत में वापस आये और जो भी इससे इनकार करे या बहानेबाजी करे सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनको जनता के हवाले कर दिया जाये | 10 या 15 नेताओ को जानता मार मार कर मौत दे देगी तो बचे हुवे सारे नेता और अधिकारी अपनी जान बचाने के लिए अपना मुह खोलेंगे ही | और उन्हें वो कला धन लाना ही होगा | और जब सभी नेता और अधिकारी निपट जायेंगे तो उन्हें देश के धन को लूटने और देश के साथ गदारी करने के जुर्म में सुप्रीम कोर्ट हमेशा हमेशा के लिए आजीवन कारावास जी सजा दे दे | ऐसा नहीं होना चाहिए कि काला धन आ गया तो उन्हें मामूली सजा देकर छोड़ दे | जब तक वो लोग जिए तब तक वो सलाखों में ही सडने चाहिए |

फिर संविधान में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा एक नया कानून बनाया जाये जिससे कि भविष्य में काला धन बाहर ना जाने पाए.

04 चौथा और अन्तिम तरीका है कि रिजर्व बैंक से करेंसी चेंज ( currency recall ) करवाओ, जब करेंसी चेंज होगी तो वर्तमान में जितने भी नोट है वो केवल कागज हो जायेंगे, यानि किसी काम के नहीं रहेंगे, फिर एक अभियान चला कर पुराने नोट को कलेक्ट करो उसके बदले नई करेंसी के नोट जनता को दो.

अंत में संविधान में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा एक नया कानून बनाया जाये जिससे कि भविष्य में काला धन बाहर ना जाने पाए.

सिहासन खाली करो की जनता आती है.............(Poem)

सदियो की ठण्डी बुझी राख सुगबुगा उठी,

मिट्टी सोने का ताज् पहन इठलाती है।

दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ...........


जनता? हां, मिट्टी की अबोध् मूर्ती वही,

जाड़े पाले की कसक सदा सहने वाली,

जब अंग-अंग मे लगे सांप हो चूस रहे,
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहने वाली।
लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते है,
जनता जब कोपकुल हो भृकुटी चढ़ाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।


हुन्कारो से महलो की नीव उखड जाती,
सांसो के बल से ताज हवा मे उडता है,
जनता की रोके राह समय मे ताब कहां?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुडता है।


सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
120 कोटि हित सिहासन तैयार करो,
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
120 कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।

आरती लिये तु किसे ढूंढता है मूरख,
मन्दिरो, राजप्रासदो मे, तहखानो मे,
देवता कही सड़कों पर मिट्टी तोड रहे,
देवता मिलेंगे खेतो मे खलिहानो मे।

फ़ावडे और हल राजदण्ड बनने को है,
धुसरता सोने से श्रृंगार सजाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिहासन खाली करो कि जनता आती है।

( रामधारी सिंह 'दिनकर ')


Sunday, February 20, 2011

अगर नेता चुनने का अधिकार है तो उसे हटाने का या जेल में भेजने का अधिकार भी होना चाहिए .............

अगर नेता चुनने का अधिकार है तो उसे हटाने का या जेल में भेजने का अधिकार भी होना चाहिए .............

आपको यह पत्र एक क्रांति की जानकारी देंने के लिए भेजा गया है. जैसे आप हम सब आज कल की बढती हुयी महंगाई और भ्रष्टाचार आदि की समस्यों से परेशान है. हम लोग परेशान हो रहे है और सरकारों का, नेताओ का, मंत्रयो का तमाशा देख रहे है.हम कुछ कर भी नहीं सकते.आप ये देखते होंगे की हमारे देश में ये सारी समस्ये [गरीबी, भुखमरी आदि] का मुख्या कारण ‘’भ्रष्टाचार ‘’ है.

हम देखते है अमेरिका जैसे देशो में भ्रष्टाचार आदि न के बराबर है. ऐसा क्यों होता है हमारे देश में भ्रष्टाचार और घोटाले के रोज नए रिकॉर्ड बनते है और अमेरिका आदि देशो में भ्रष्टाचार लगभग जीरो के बराबर है. क्यों अमेरिका में पुलिस, अधिकारी, नेता, रिश्वत लेने से डरते है? क्यूंकि वहां पर एक कानून है जिसका नाम है ‘’राईट टू रिकाल’’ ( Right To Recall ), वापिस बुलाने का कानून – जिसका अर्थ है अगर आपको लगता है कोइ नेता, अधिकारी, या पुलिस बेईमान है तो आपको उसे हटाने का अधिकार है. और अगर कोई ज्यादा भ्रष्ट हो जाये और आपको लगे इस इंसान की सही जगह जेल है तो आप उस व्यक्ति के खिलाफ वोट करके उसे जेल भेज सकते हो. अगर एक बार किसी नेता, अधिकारी, मंत्री, पुलिस, को ये लगने लगा की अगर उन्होंने कोई गलत काम किया तो लोग वोट करके उसे हटा देंगे या जेल भेज देंगे तो यकीन मानिये वो कोई बेईमानी नहीं करेगा. और अगर ऐसा हुवा तो यकीन मानिये हमारा देश फिर से सोने की चिड़िया बन जायेगा. हमारे देश में लूट, गरीबी, भुखमरी, बेईमानी, महंगाई, आदि की सारी समस्याये खत्म हो जाएँगी. आप और हम एक बेहतर भारत में साँस ले सकेंगे. क्या आपको ऐसा नहीं लगता है कि ये होना चाहिए | आपको ‘’अगर नेता चुनने का अधिकार है तो उसे हटाने का या जेल में भेजने का अधिकार‘’ भी आपको मिलना चाहिए, जैसा अमेरिका आदि देशो में होता है |

आप से एक अनुरोध है कि ज्यादा से ज्यादा लोगो को इसके बारे में बताइए | ये देश बदलेगा और हम और आप मिलकर बदलेंगे | अगर आपने साथ न दिया तो भी हम बहुत कुछ कर जायेंगे और अगर आपका साथ मिला तो ये जहाँ बदल कर दिखायेंगे | आओ कुछ ऐसा करे जिससे खुद पर गर्व हो |

आप से एक अन्तिम अनुरोध है कि आप रोज शाम को 8 से 9 बजे ‘’आस्था’’ चैनल पर ‘’स्वामी रामदेव जी’’ का कार्यक्रम ‘’भारत स्वाभिमान’’ सपरिवार देखिये और अपने जीवन में स्वदेशी वस्तुओं का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कीजिये | आप से कहना तो बहुत कुछ है मगर यही समाप्त करता हू इस आशा के साथ कि आप से दोबारा बात जरुर होगी.

राईट टू रेकाल्ल के लिए वोट करें ताकि सत्ता आम जनता के पास आ जाये. जब सत्ता आम जनता के पास आ जाएगी , तभी भ्रष्टाचार और अन्य समाज की समस्याएँ समाप्त होंगी नहीं तो नहीं |

हमारे भारत में एक मंत्रालय हुवा करता है जो परिवार कल्याण एवं स्वास्थ्य मंत्रालय कहलाता है| हमारी भारत सरकार प्रति वर्ष करीब 23700 करोड़ रुपये लोगों के स्वस्थ्य पर खर्च करती है | फिर भी हमारे देश में ये बीमारियाँ बढ़ रही है | आइये कुछ आंकड़ों पर नजर डालते है -

01 आबादी (जनसँख्या) - भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि सन 1951 में भारत की आबादी करीब 33 करोड़ थी जो सन 2010 तक 118 करोड़ हो गई |
02 सन 1951 में पूरे भारत में 4780 डॉक्टर थे, जो सन 2010 तक बढ़कर करीब 18,00,000 (18 लाख) हो गए |
03 सन 1947 में भारत में एलोपेथी दवा बनाने वाली कम्पनियाँ करीब 10-12 कंपनिया हुवा करती थी जो आज बढ़कर करीब 20 हजार हो गई है |
04 सन 1951 में पूरे भारत में करीब 70 प्रकार की दवाइयां बिका करती थी और आज ये दवाइयां बढ़कर करीब 84000 (84 हजार) हो गई है |
05 सन 1951 में भारत में बीमार लोगों की संख्या करीब 5 करोड़ थी आज बीमार लोगों की तादाद करीब 100 करोड़ हो गई है |

हमारी भारत सरकार ने पिछले 64 सालों में अस्पताल पर, दवाओ पर, डॉक्टर और नर्सों पर, ट्रेनिंग वगेराह वगेरह में सरकार ने जितना खर्च किया उसका 5 गुना यानी करीब 50 लाख करोड़ रूपया खर्च कर चुकी है| आम जनता ने जो अपने इलाज के लिए पैसे खर्च किये वो अलग है | आम जनता का लगभग 50 लाख करोड़ रूपया बर्बाद हुवा है पिछले 64 सालों में इलाज के नाम पर, बिमारियों के नाम पर |

इतना सारा पैसा खर्च करने के बाद भी भारत में रोग और बीमारियाँ बढ़ी है |

01) हमारे देश में आज करीब 5 करोड़ 70 लाख लोग dibities (मधुमेह) के मरीज है | (भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि करीब 3 करोड़ लोगों को diabities होने वाली है |
02) हमारे देश में आज करीब 4 करोड़ 80 लाख लोग ह्रदय रोग की विभिन्न रोगों से ग्रसित है |
03) करीब 8 करोड़ लोग केंसर के मरीज है | भारत सरकार कहती है की 25 लाख लोग हर साल केंसर के कारण मरते है |
04) 12 करोड़ लोगों को आँखों की विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ है |
05) 14 करोड़ लोगों को छाती की बीमारियाँ है |
06) 14 करोड़ लोग गठिया रोग से पीड़ित है |
07) 20 करोड़ लोग उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure ) और निम्न रक्तचाप (Low Blood Pressure ) से पीड़ित है |
08) 27 करोड़ लोगों को हर समय 12 महीने सर्दी, खांसी, झुकाम, कोलेरा, हेजा आदि सामान्य बीमारियाँ लगी ही रहती है |
09) 30 करोड़ भारतीय महिलाएं अनीमिया की शिकार है | एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी | महिलाओं में खून की कमी से पैदा होने वाले करीब 56 लाख बच्चे जन्म लेने के पहले साल में ही मर जाते है | यानी पैदा होने के एक साल के अन्दर-अन्दर उनकी मृत्यु हो जाती है | क्यों कि खून की कमी के कारण महिलाओं में दूध प्रयाप्त मात्र में नहीं बन पाता| प्रति वर्ष 70 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार होते है | कुपोषण के मायने उनमे खून की कमी, फास्फोरस की कमी, प्रोटीन की कमी, वसा की कमी वगेरह वगेरह .......

ऊपर बताये गए सारे आंकड़ों से एक बात साफ़ तौर पर साबित होती है कि भारत में एलोपेथी का इलाज कारगर नहीं हुवा है | एलोपेथी का इलाज सफल नहीं हो पाया है| इतना पैसा खर्च करने के बाद भी बीमारियाँ कम नहीं हुई बल्कि और बढ़ गई है | यानी हम बीमारी को ठीक करने के लिए जो एलोपेथी दवा खाते है उससे और नई तरह की बीमारियाँ सामने आने लगी है |

पहले मलेरिया हुवा करता था | मलेरिया को ठीक करने के लिए हमने जिन दवाओ का इस्तेमाल किया उनसे डेंगू, चिकनगुनिया और न जाने क्या क्या नई नई तरह की बुखारे बिमारियों के रूप में पैदा हो गई है | किसी ज़माने में सरकार दावा करती थी की हमने चिकंपोक्ष (छोटी माता और बड़ी माता) और टी बी जैसी घातक बिमारियों पर विजय प्राप्त कर ली है लेकिन हाल ही में ये बीमारियाँ फिर से अस्तित्व में आ गई है, फिर से लौट आई है| यानी एलोपेथी दवाओं ने बीमारियाँ कम नहीं की और ज्यादा बधाई है |

एक खास बात आपको बतानी है की ये अलोपेथी दवाइयां पहले पूरे संसार में चलती थी जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, फ़्रांस, आदि | हमारे देश में ये एलोपेथी इलाज अंग्रेज लाये थे | हम लोगों पर जबरदस्ती अंग्रेजो द्वारा ये इलाज थोपा गया | द्वितीय विश्व युद्ध जब हुवा था तक रसायनों का इस्तेमाल घोला बारूद बनाने में और रासायनिक हथियार बनाने में हुवा करता था | जब द्वितीय विश्वयुध में जापान पर परमाणु बम गिराया गया तो उसके दुष्प्रभाव को देख कर विश्व के कई प्रमुख देशों में रासायनिक हथियार बनाने वाली कम्पनियाँ को बंद करवा दी गई| बंद होने के कगार पर खड़ी इन कंपनियों ने देखा की अब तो युद्ध खत्म हो गया है | अब इनके हथियार कौन खरीदेगा | तो इनको किसी बाज़ार की तलाश थी | उस समय सन 1947 में भारत को नई नई आजादी मिली थी और नई नई सरकार बनी थी| यहाँ उनको मौका मिल गया| और आप जानते है की हमारे देश को आजाद हुवे एक साल ही गुजरा था की भारत का सबसे पहला घोटाला सन 1948 में हुवा था सेना की लिए जीपे खरीदी जानी थी | उस समय घोटाला हुवा था 80 लाख का | यांनी धीरे धीरे ये दावा कम्पनियां भारत में व्यापार बढाने लगी और इनके व्यापार को बढ़ावा दिया हमारी सरकारों ने| ऐसा इसलिए हुवा क्यों की हमारे नेताओं को इन दावा कंपनियों ने खरीद लिया| हमारे नेता लालच में आ गए और अपना व्यापार धड़ल्ले से शुरू करवा दिया | इसी के चलते जहाँ हमारे देश में सन 1951 में 10 -12 दवा कंपनिया हुवा करती थी वो आज बढ़कर 20000 से ज्यादा हो गई है | 1951 में जहाँ लगभग 70 कुल दवाइयां हुवा करती थी आज की तारिख में ये 84000 से भी ज्यादा है | फिर भी रोग कम नहीं हो रहे है, बिमारियों से पीछा नहीं छूट रहा है |

आखिर सवाल खड़ा होता है कि इतनी सारे जतन करने के बाद भी बीमारियाँ कम क्यों नहीं हो रही है | इसकी गहराई में जाए तो हमे पता लगेगा कि मानव के द्वारा निर्मित ये दवाए किसी भी बीमारी को जड़ से समाप्त नहीं करती बल्कि उसे कुछ समय के लिए रोके रखती है| जब तक दवा का असर रहता है तब तक ठीक, दवा का असर खत्म हुवा बीमारियाँ फिर से हावी हो जाती है | दूसरी बात इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट बहुत ज्यादा है | यानी एक बीमारी को ठीक करने के लिए दवा खाओ तो एक दूसरी बीमारी पैदा हो जाती है | आपको कुछ उदहारण दे के समझाता हु -

01) Entipiratic बुखार को ठीक करने के लिए हम एन्तिपैरेतिक दवाएं खाते है जैसे - पेरासिटामोल, आदि | बुखार की ऐसी सेकड़ो दवाएं बाजार में बिकती है | ये एन्तिपिरेटिक दवाएं हमारे गुर्दे ख़राब करती है | गुर्दा ख़राब होने का सीधा मतलब है की पेसाब से सम्बंधित कई बीमारियाँ पैदा होना जैसे पथरी, मधुमेह, और न जाने क्या क्या| एक गुर्दा खराब होता है उसके बदले में नया गुर्दा लगाया जाता है तो ऑपरेशन का खर्चा करीब 3.50 लाख रुपये का होता है |
02 ) Antidirial इसी तरह से हम लोग दस्त की बीमारी में Antidirial दवाए खाते है | ये एन्तिदिरल दवाएं हमारी आँतों में घाव करती है जिससे केंसर, अल्सर, आदि भयंकर बीमारियाँ पैदा होती है |
03 ) Enaljesic इसी तरह हमें सरदर्द होता है तो हम एनाल्जेसिक दवाए खाते है जैसे एस्प्रिन , डिस्प्रिन , कोल्द्रिन और भी सेकड़ों दवाए है | ये एनाल्जेसिक दवाए हमारे खून को पतला करती है | आप जानते है की खून पतला हो जाये तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और कोई भी बीमारी आसानी से हमारे ऊपर हमला बोल सकती है |

आप आये दिन अखबारों में या टी वी पर सुना होगा की किसी का एक्सिडेंट हो जाता है तो उसे अस्पताल ले जाते ले जाते रस्ते में ही उसकी मौत हो जाती है | समज में नहीं आता कि अस्पताल ले जाते ले जाते मौत कैसे हो जाती है ? होता क्या है कि जब एक्सिडेंट होता है तो जरा सी चोट से ही खून शरीर से बहार आने लगता है और क्यों की खून पतला हो जाता है तो खून का थक्का नहीं बनता जिससे खून का बहाव रुकता नहीं है और खून की कमी लगातार होती जाती है और कुछ ही देर में उसकी मौत हो जाती है |

पिछले करीब 30 से 40 सालों में कई सारे देश है जहाँ पे ऊपर बताई गई लगभग सारी दवाएं बंद हो चुकी है | जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, और भी कई देश में जहा ये दवाए न तो बनती और न ही बिकती है| लेकिन हमारे देश में ऐसी दवाएं धड़ल्ले से बन रही है, बिक रही है| इन 84000 दवाओं में अधिकतर तो ऐसी है जिनकी हमारे शरीर को जरुरत ही नहीं है | आपने विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO का नाम सुना होगा| ये दुनिया कि सबसे बड़ी स्वास्थ्य संस्था है | WHO
कहता है कि भारत में ज्यादा से ज्यादा केवल 350 दवाओं की आवश्यकता है | अधितम केवल 350 दवाओं की जरुरत है, और हमारे देश में बिक रही है 84000 दवाएं | यानी जिन दवाओं कि जरूरत ही नहीं है वो डॉक्टर हमे खिलते है क्यों कि जितनी ज्यादा दवाए बिकेगी डॉक्टर का कमिसन उतना ही बढेगा|

फिर भी डॉक्टर इस तरह की दवाए खिलते है | मजेदार बात ये है की डॉक्टर कभी भी इन दवाओं का इस्तेमाल नहीं करता और न अपने बच्चो को खिलाता है| ये सारी दवाएं तो आप जैसे और हम जैसे लोगों को खली जाती है | वो ऐसा इसलिए करते है क्यों कि उनको इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट पता होता है | और कोई भी डॉक्टर इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट के बारे में कभी किसी मरीज को नहीं बताता| अगर भूल से पूछ बैठो तो डॉक्टर कहता है कि तुम ज्यादा जानते हो या में?
दूसरी और चोकने वाली बात ये है कि ये दवा कंपनिया बहुत बड़ा कमिसन देती है डॉक्टर को| यानी डॉक्टर कमिशनखोर हो गए है या यूँ कहे की डॉक्टर दवा कम्पनियों के एजेंट हो गए है तो गलत ना होगा |

आपने एक नाम सुना होगा M.R. यानि मेडिकल Represetative | ये नाम अभी हाल ही में कुछ वर्षो में ही अस्तित्व में आया है| ये MR नाम का बड़ा विचित्र प्राणी है | ये कई तरह की दवा कम्पनियों की दवाएं डॉक्टर के पास ले जाते है और इन दवाओं को बिकवाते है | ये दवा कंपनिया 40 40% तक कमिसन डॉक्टर को सीधे तौर पर देती है | जो बड़े बड़े शहरों में दवा कंपनिया है नकद में डॉक्टर को कमिसन देती है | ऑपरेशन करते है तो उसमे कमिसन खाते है, एक्सरे में कमिसन, विभिन्न प्रकार की जांचे करवाते है डॉक्टर , उमने कमिसन | सबमे इनका कमिसन फिक्स रहता है | जिन बिमारियों में जांचों की कोई जरुरत ही नहीं होती उनमे भी डॉक्टर जाँच करवाने के लिए लिख देते है ये जाँच कराओ वो जाँच करो आदि आदि | कई बीमारियाँ ऐसी है जिसमे दवाएं जिंदगी भर खिलाई जाती है | जैसे हाई ब्लड प्रेसर या लो ब्लड प्रेस्सर, daibities आदि | यानी जब तक दवा खाओगे आपकी धड़कन चलेगी | दवाएं बंद तो धड़कन बंद | जितने भी डॉक्टर है उनमे से 99 % डॉक्टर कमिसंखोर है | केवल 1 % इमानदार डॉक्टर है जो सही मायने में मरीजो का सही इलाज करते है |

सारांस के रूप में हम कहे की मौत का खुला व्यापार धड़ल्ले से पूरे भारत में चल रहा है तो कोई गलत नहीं होगा|

पूरी दुनिया में केवल २ देश है जहाँ आयुर्वेदिक दवाएं भरपूर मात्र में मिलती है (1) भारत (2) चीन
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व्यवस्था परिवर्तन

पिछले 63 सालों से हम सरकारे बदल-बदल कर देख चुके है..................... हर समस्या के मूल में मौजूदा त्रुटिपूर्ण संविधान है, जिसके सारे के सारे कानून / धाराएँ अंग्रेजो ने बनाये थे भारत की गुलामी को स्थाई बनाने के लिए ...........इसी त्रुटिपूर्ण संविधान के लचीले कानूनों की आड़ में पिछले 63 सालों से भारत लुट रहा है ............... इस बार सरकार नहीं बदलेगी ...................... अबकी बार व्यवस्था परिवर्तन होगा...................

अधिक जानकारी के लिए रोजाना रात 8 .00 बजे से 9 .00 बजे तक आस्था चेंनल और रात 9 .00 बजे से 10 .00 बजे तक संस्कार चेनल देखिये